3 : वर्णन प्रविधि(DESCRIPTION TECHNIQUE)
वर्णन प्रविधि का प्रयोग किसी घटना, दृश्य एवं नियम का विस्तारपूर्वक वर्णन देने के लिए किया जाता है। केवल प्रश्नों के पूछने अथवा विवरण दे देने से किसी घटना अथवा दृश्य का सम्पूर्ण चित्र बालक के मस्तिष्क पटल पर उपस्थित नहीं किया जा सकता।
कभी-कभी अध्यापक को विषय के प्रति विस्तारपूर्वक विवरण देना पड़ता है। वर्णन को विस्तृत विवरण कहना अधिक समीचीन है। विवरण में टीका-टिप्पणी तथा विश्लेषण की भावना निहित होती है, जबकि वर्णन में विषय का सांगोपांग विवेचन एवं प्रस्तुतीकरण मुख्य उद्देश्य होता है।
नागरिकशास्त्र में सन् 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम का वर्णन एक वक्तव्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। भाषा के शिक्षण द्वारा वर्णन की योग्यता विकसित की जाती है तथा छात्र वर्णनात्मक निबन्धों तथा भाषणों के अभ्यास द्वारा यह योग्यता लाने का प्रयास करते हैं। इसी प्रकार इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा विज्ञान शिक्षण में भी वर्णन प्रविधि का प्रयोग किया जाता है, सजीव एवं रोचक वर्णन प्रस्तुत करना एक कला है।
वर्णन की प्रभावोत्पादकता निम्नांकित बातों पर आधारित है
1. वर्णन की शैली वर्णन किए जाने वाले विषय से सम्बन्धित भाव में उतार-चढ़ाव, शब्दों का प्रयोग, वाक्यों का गठन, अभिव्यक्ति आदि बातें वर्णन की शैली के आवश्यक तत्व हैं। यदि वर्णन की भाषा सरल, शुद्ध एवं स्पष्ट नहीं है, तो वर्णन की शैली पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है।
2. वर्णनीय विषय जिस विषय का वर्णन किया जा रहा है, उसका चालक के मानसिक स्तर तथा सामाजिक परिवेश से कितना निकट का सम्बन्ध है, यह बात भी वर्णन को प्रभावशाली बनाने में सहायक होती है।
3. वर्णन की उपयुक्तता यदि वर्णन छात्रों की रुचि एवं विकास अवस्था की दृष्टि से उपयुक्त है, तो वह स्वाभाविक रूप से छात्रों के मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव डालता है।
4. वर्णन की सर्वागपूर्णता वर्णन द्वारा विषय की सर्वांगपूर्ण विवेचना प्रस्तुत करना प्रमुख लक्ष्य होता है। यदि वर्णन व्यापक नहीं है, तो उसे प्रभावशाली नहीं माना जा सकता है। एकपक्षीय वर्णन की उपयोगिता बहुपक्षीय वर्णन की तुलना में सर्वदा कम रहती है। अतः एक अच्छा वर्णन व्यापक तथा बहुपक्षीय होता है।
शब्दकोश के अनुसार “ वर्णन किसी वस्तु के गुणों तथा रूप को शब्दों द्वारा प्रदर्शित करने की क्रिया है।"
किसी घटना, दृश्य एवं सिद्धान्त का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
घटना का चित्र छात्र के मस्तिष्क में निर्मित हो जाता है।
किसी अप्रत्यक्ष तथ्य को विद्यार्थियों के मस्तिष्क में कल्पना के माध्यम से प्रत्यक्ष चित्रांकन।
प्रयोग :
(1)वर्णन स्वाभाविक, धाराप्रवाह, आत्मविश्वास, अध्यापक पारंगत-[वर्णनकला में ]
(2 ) भाषा सरल, स्पष्ट, रोचक।
(3) प्रश्न उक्ति। प्रविधि के पूरक के रूप में काम में ली जानी चाहिए।
(4) वर्णन के मध्य आने वाली मुख्य विषय वस्तु श्यामपट्ट पर अंकित की जानी चाहिए। छात्र श्यामपट्ट सार, अभ्यास पुस्तिका में नोट कर सके।
(5) शिक्षक विषय वस्तु से न भटके।
(6) छात्र ध्यानपूर्वक सुने, जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।
(7) एक विचार बार बार नहीं दोहराया जाना चाहिए।
(8) अध्यापक कशन की गति नियंत्रित व संयत उच्चारण स्पष्ट है।
वर्णन प्रविधि की सीमाएँ (Limitations of Description Technique)
प्रत्येक विषय के शिक्षण में इस प्रविधि का प्रयोग सम्भव नहीं है। इसी तरह एक ही विषय के प्रत्येक पहलू का शिक्षण इस प्रविधि के माध्यम से नहीं दिया जा सकता है। वर्णन प्रविधि की कुछ सीमाएँ है, जो इस प्रकार है
(1) वर्णन की भाषा एवं विषय-वस्तु उपयुक्त न होने पर शिक्षण में नीरसता आ जाती है और छात्र विषय की ओर ध्यान नहीं दे पाते हैं।
(2) वर्णन में शिक्षक अधिक सक्रिय होता है। छात्र की क्रियाशीलता को जाग्रत करने की कम होती है।
(3) वर्णन के अधिक विस्तृत एवं लम्बा हो जाने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। कभी-कभी एक व्यापक वर्णन तथा भाषण में बहुत कम अन्तर रह जाता है।
(4) वर्णन की यथेष्टता एवं व्यापकता के बारे में निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। इसके लिए विशेष प्रकार की सूझ-बूझ आवश्यक है।
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